बिहार में जमीन से जुड़े मामलों को सरल और पारदर्शी बनाने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने एक क्रांतिकारी पहल की है। अब दो रैयतों (किसानों या जमीन मालिकों) के बीच आपसी सहमति से की गई जमीन की अदला-बदली (बदलैन) को वैध कानूनी दर्जा मिल गया है। यह बदलाव बिहार विशेष सर्वेक्षण एवं बंदोबस्त (संशोधन) नियमावली 2025 के तहत किया गया है, जो राज्य के हजारों किसानों के लिए एक बड़ी राहत साबित होगा।
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✅ अब जमीन पर होगा पूरा अधिकार, नहीं होगी रजिस्ट्री ऑफिस की दौड़
पहले की व्यवस्था में ग्रामीण इलाकों में आपसी सहमति से जमीन की अदला-बदली तो हो जाती थी, लेकिन उसका कोई कानूनी आधार नहीं होता था। इससे न तो रैयत उस जमीन को बेच सकता था, और न ही उस पर किसी प्रकार का ऋण ले सकता था। पर अब, अगर दो रैयत मौखिक रूप से एक-दूसरे की जमीन पर शांतिपूर्वक कब्जा किए हुए हैं और सर्वेक्षण के दौरान लिखित सहमति देते हैं, तो उनका नाम भू-अधिकार अभिलेख में दर्ज होगा। इससे न सिर्फ उन्हें जमीन पर पूरा कानूनी हक मिलेगा, बल्कि उनका खाता भी खोला जाएगा।
📌 ग्रामीण भारत में बदलेगा जमीन का परिदृश्य
यह नई व्यवस्था खासकर ग्रामीण क्षेत्रों के लिए अत्यंत उपयोगी है, जहां आज भी कई मामलों में जमीन की अदला-बदली सिर्फ आपसी सहमति से होती है। अब ऐसी अदला-बदली भी सरकारी दस्तावेजों में दर्ज होकर वैध हो जाएगी। यह फैसला ग्रामीण किसानों को आत्मनिर्भर बनाने और भूमि विवादों को सुलझाने की दिशा में एक मजबूत कदम है।
जहानाबाद जिला बंदोबस्त पदाधिकारी उपेंद्र प्रसाद के अनुसार, यह प्रक्रिया पहले से ही कुछ जिलों में प्रारंभ हो चुकी है। यह न केवल भूमि अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, बल्कि लंबे समय से चली आ रही पारिवारिक और सामाजिक जमीन विवादों का भी समाधान करेगा।
💡 अब किसान ले सकेंगे बैंक से लोन और कर सकेंगे बिक्री
कानूनी मान्यता मिलने के बाद अब रैयत उस जमीन पर कृषि लोन ले सकते हैं, सरकारी योजनाओं का लाभ उठा सकते हैं और ज़रूरत पड़ने पर भूमि की बिक्री भी कर सकते हैं। यह बदलाव उनकी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने और भविष्य को सुरक्षित करने में मददगार साबित होगा।
🌟 निष्कर्ष
बिहार सरकार का यह निर्णय न केवल एक प्रशासनिक सुधार है, बल्कि यह लाखों किसानों को सम्मानजनक ज़िंदगी और सुरक्षा देने वाला कदम है। जमीन से जुड़ी समस्याएं अब कम होंगी और ग्रामीण समाज को एक नई दिशा मिलेगी।