बिहार में “रिजर्व फैसला” बना जनता की परेशानी का कारण, महीनों तक अटके रहते हैं जमीन विवाद के निर्णय

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बिहार: राज्य में भूमि सुधार उप समाहर्ता (DCLR) द्वारा जमीन से जुड़े मामलों की सुनवाई के बाद फैसले को महीनों तक “रिजर्व” रखे जाने से आम लोगों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। यह स्थिति केवल एक-दो जिलों तक सीमित नहीं, बल्कि पटना, सारण, रोहतास, गया, दरभंगा सहित लगभग पूरे राज्य में देखी जा रही है।

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क्या है ‘रिजर्व फैसला’?

जब किसी जमीन विवाद की सुनवाई पूरी हो जाती है, तो निर्णय सुनाने की बजाय उसे “रिजर्व” रख दिया जाता है – यानी सुरक्षित रखा जाता है। इसका अर्थ यह है कि फैसला तैयार तो हो चुका है, लेकिन उसे सार्वजनिक नहीं किया गया है। ऐसा महीनों तक चलता रहता है, जिससे न तो पक्षकारों को अपने केस की स्थिति का पता चलता है, और न ही वे समय पर अपील कर पाते हैं।

जनता को क्यों उठानी पड़ रही है परेशानी?

  • सुनवाई पूरी होने के बाद भी निर्णय नहीं मिलना जनता के लिए सबसे बड़ी परेशानी है।
  • जब तक फैसला सार्वजनिक नहीं होता, तब तक कोई भी पक्ष अपील नहीं कर सकता।
  • दोनों पक्ष महीनों तक सिर्फ इंतजार करते रह जाते हैं, जिससे न्याय मिलने में देरी होती है।

किन जिलों में सबसे अधिक ‘रिजर्व केस’?

पटना, छपरा, सारण, गया, रोहतास, दरभंगा जैसे जिलों में सबसे ज्यादा फैसले लंबित हैं। ये वो ज़िले हैं जहां जमीन विवादों की संख्या पहले से अधिक है, और अब फैसलों की देरी ने जनता का भरोसा कमजोर कर दिया है।

ऑनलाइन सिस्टम के बावजूद क्यों भीड़?

राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग की सभी सेवाएं अब ऑनलाइन हैं, फिर भी अनुमंडल और अंचल कार्यालयों में लोगों की भारी भीड़ लग रही है। कारण है – अधिकारियों द्वारा जानबूझकर ऑनलाइन सिस्टम में देरी या गड़बड़ी करना, ताकि लोग फिजिकल रूप से दफ्तर आने को मजबूर हों। इससे न केवल समय और पैसा बर्बाद हो रहा है, बल्कि भ्रष्टाचार की गुंजाइश भी बढ़ जाती है।

सरकार की सख्ती, लेकिन सुधार नहीं

राजस्व मंत्री संजय सरावगी ने हाल ही में डीसीएलआर की कार्यशैली पर नाराजगी जाहिर की थी। विभाग ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि:

  • फैसले सुनवाई के दो से चार दिन के अंदर अपलोड किए जाएं।
  • बैकडेट में कोई अपलोडिंग न हो।
  • डिजिटल सिग्नेचर और अपलोड तिथि एक ही होनी चाहिए।

विभागीय सचिव दीपक कुमार सिंह ने चेतावनी दी है कि अगर आदेशों की अवहेलना की गई, तो संबंधित अधिकारियों की पहचान कर सख्त कार्रवाई की जाएगी।

जनता की उम्मीदें अब सरकार से

भूमि विवादों का समय पर निष्पादन लोगों के न्याय के अधिकार से जुड़ा मामला है। सरकार को चाहिए कि वह इस व्यवस्था को पारदर्शी और समयबद्ध बनाए। साथ ही, तकनीकी साधनों का दुरुपयोग करने वाले अफसरों पर तत्काल और कठोर कार्रवाई की जाए।

🔴 निष्कर्ष:

बिहार में ‘रिजर्व फैसलों’ का यह खेल अब बंद होना चाहिए। डिजिटल युग में जहां सब कुछ कुछ क्लिक में हो रहा है, वहां न्याय में देरी किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं हो सकती। अगर सरकार जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाती, तो यह लोगों के भरोसे पर एक गहरी चोट होगी।

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